8.4.03

0 कुछ मेरे बारे मे

बचपन से लिखने का शौक है. पहले डायरी के पन्ने काला करता था अब की बोर्ड पर ऊंगलीयाँ टपर टपर करती है. अफस्यानी व्यस्तता मे भी लिखने का समय निकाल ही लेता हूँ. बचपन मे सोचता था कि लेखक बनूंगा. लेकिन पिताजी के डाँट ने ईन्जीनियर बना दिया. मेरा दिमाग तो पिताजी की बात मान लिया लेकिन दिल को पिताजी का क्या परवाह. पिताजी का परवाह किए बगैर मुआ ना जाने कौन कौन सा गुल खिलाया. मुआ दिल का क्या ? गुल तो खिलाता ही रहता है! की बोर्ड पर ऊंगलियाँ टपराया तो क्या हुआ.

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