21.1.08

11 मिथिला: जहाँ ताजिए की पूजा होती है धूप-दीप और नेवैद्य से

 
हिन्दू-मुस्लिम एकता का उदाहरण
 
बोला जाता है कि सभ्यता और सँस्कृति पानी की तरह है जिसमे यदि कोई रुकावट नही आए तो अपना रास्ता खूद ही ढूँढ लेती है. जहाँ दूनियाँ के विभिन्न समुदाय आपस मे लड़ते मरते रहते हैँ. मिथिला मे ताजिए की पूजा होती है. कल मोहर्रम था, गाँव का मोहर्रम याद आ गया. अपने गाँव के मोहर्रम के मार्फत एक अनोखा सामाजिक सदभाव देखनो को मिलता है. यह लेख मैने अपने बचपन के अनुभवों [1991 तक का] के आधार पर लिख रहा हूँ.
 
मिथिला उत्तर बिहार मे बसा एक इलाका है जो रामायण के दिनो से पूरे दूनियाँ मे अपनी साँस्कृतिक धरोहर के लिए विश्व-विख्यात है. मिथिला का अपना समाज है और इस समाज मे प्रत्येक समुदाय के लोग रहते हैँ. बाँकी हिन्दुस्तान की तरह यहाँ भी कालान्तर मे बहुत से कुरीतियों ने जन्म लिया, लेकिन कुछ ऐसी अच्छाईयाँ भी है जिसको लेकर मुझे गर्व का अनुभव होता है, क्योँकि यह सामाजिक सदभावना का ऐसा उदाहरण है जो हिन्दुस्तान के दूसरे कोने मे शायद ही दिखने को मिले. समाज मे बहुत तरह के लोग होते हैँ जिसका एक दूसरे से सरोकार होता है. यदि आप समाज-शास्त्री की माने तो वे बोलते हैँ कि समाज का निर्माण ही इसी लिए हुआ क्योँकि हमे एक दूसरे की जरूरत है. जब एक दूसरे की जरूरत होगी तो एक दूसरे के सुख:दूख मे साथ तो देँगे ही. इसीलिए अरस्तु ने कहा था, "जो समाज मे रहना पसन्द नही करता है वो चाहे तो देव है या दानव". यह बात हमारे समाज पर भी लागू होता है और यह घटना इसी बात का सबसे बड़ा उदाहरण है.
 
चलिए विस्तार से जानेँ यह कैसे होता है. मैने बचपन मे अनुभव किया है कि मेरे गाँव मे हिन्दू और मुस्लिम मिलकर त्योहार मानाते हैं. उसका सबसे बड़ा उदाहरण है मुहर्रम का जूलूस. हमारा गाँव दो अलग भागोँ मे बँटा है. एक भाग मे हिन्दु रहते हैँ और दूसरे भाग मे मुसलमान भाई. मुसलमान वाले टोले मे विभिन्न दलोँ का अपना अपना ताजिया होता है (बिल्कूल दूर्गा पूजा की अलग अलग पण्डाल की तरह) मुहर्रम के मौके पर जब जूलूस निकलता है तो सबसे पहले हिन्दु बस्ती से होकर निकलता है, हिन्दू भाई को इज्जत देने के लिए. एक ताजिए ग्रूप का जो लीडर होता है वह तय करता है कि ताजिया कौन कौन से लोगों के दालान से होकर गुजरता है. गाँव मे इतने लोग रहते हैँ अतः सबके घर ताजिया जा नही सकता. अतः ताजिए का लीडर हिन्दु समाज के मुख्य लोग और अपने व्यक्तिगत मित्र के घर जरूर ले जाता है. ताजिए के अमुक व्यक्ति दालान पर पहुँचने के बात जूलूस मे शामिल लोग अपने जौहर का प्रदर्शन करते हैँ. और उसमे सबसे ज्यादा खुश बच्चे रहते हैं. उस व्यक्ति के घर से मिठाई-पकवान आता है, वे लोग खाते हैँ. और सबसे अन्त मे उस घर की सबसे बुजूर्ग महिला फिर ताजिए का सम्मान करने आती है. एक बूजूर्ग हिन्दु महिला ताजिए का सम्मान कैसे कर सकती है. जी हाँ वह ताजिए का पूजा करती है. पहले धान को उसके उपर फेँका जाता है और फिर पानी के अच्छिन्जल से. अगरवत्ती जलाया जाता है और फिर फूल. हिन्दू बस्ती मे यह जूलोस  मुसलमान भाई हिन्दू के सम्मान मे करते हैँ.
 
शाम को बारी हिन्दू लोगोँ का आता है. पूरे गाँव मे लगभग दस ताजिए का जूलूस होता है जो दोपहर के बात स्थानीय कर्बला के मैदान मे रखे जाते हैँ. यह मैदान मेरे गाँव के बस्ती से १.५ किलोमीटर के दूरी पर होता है. वहाँ पर मेला लगता है. उस मेले मे जो सबसे ज्यादा हिस्सा लेते हैँ वह हिन्दू  लोगों का होता है. शाम से पहले वहाँ एक शक्ति प्रदर्शन होता है. मैदान के एक तरफ हिन्दू लोगोँ के लिए सीट रिजर्व होता है.
 
इसी तरह की भागेदारी मुसलमान भाई होली मे भी लेते हैँ. हम उनके घर जम कर रँग लगाने जाते थे और वे खुशी खुशी लगवाते थे. यह घटना १९९१ तक की है ना जाने आज क्या होता है. सुना है,  अभी आर.एस.वालों का शाखा चलता है. लालू यादव का माई MY (M-muslim Y-yaadav) समीकरण भी जिन्दा है. मुझे नही मालूम की आज की स्थिति क्या है...

11 comments:

  1. मिथिला की यह खूबी जानकर बड़ी खुशी हुई.दरअसल हमें सद्भभावना की मिसालें ही हमें एक सूत्र में पिरोकर रखती हैं. छत्तीसगढ़ में भी जब जगह जगह ताजिए निकलते हैं तो हिन्दू पूरी श्रध्दा के साथ पूजा करते हैं. कुछ ताजिए तो हिन्दू ही सजाते हैं. यहां दुर्गापूजा समितियों में कई के प्रमुख मुस्लिम होते हैं. इसीलिए तो कहते हैं It happens only in india.
    राजेश
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  2. कमाल की पोस्ट। मेरा सलाम और नमस्कार स्वीकार करें। ये हैं हमारे भारत की महानता।

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  3. बहुत बढ़िया!!

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  4. कई अंचल में ऐसे सौहार्दपूर्ण वाकये और रीति देखने को मिलती है। हमारे यहां जब डोल ग्यारस पर बैवाण निकलते है ,तो उनके नीचे से हर सम्प्रदाय के बच्चे निकाले जाते हैं। ताकि साल भर वो बुरी बलाऒं से बचे रहें।

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  5. आपकी पोस्‍ट पढ़कर राही मासूम रजा के 'आधा गांव' की याद आ गई.
    बहुत अच्‍छा लगा पढ़कर

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  6. बहुत बढिया,
    पढकर मन खुश हो गया ।

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  7. मिथिला की कई खूबियां ताजियों के साथ दफन हुई पड़ी हैं। आपने उनमें से एक को निकाला और उसका पोस्टमाटॅम करके इस विशाल पाठक जगत के सामने रखा, इसके लिए बहुत-बहुत बधाई। जब बिहार में व्याप्त अव्यवस्थाओं पर छींटाकशी का माहौल हो, वैसे में ऐसी खबरों से आत्मा को सुकून मिलता है। सबसे बढ़कर तो यह कि यह मिथिला की माटी का ही प्रभाव है, जिससे साहस पाकर आप जैसा रिसचॅ स्कॉलर इस प्रकार अपनी फोटो ब्लॉग पर लगा पाता है।

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  8. मँगलम जी;
    मैने तो अपने परिचय मे ही लिख रखा है... सूट-बूट और टाई तो केवल रोजी रोटी के लिए है. मेरा असली पहचान तो ब्लोग पर लगे फोटो मे छुपा है. मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद.
    बाँकी सभी साथियों का धन्यवाद विशेष तौर पर राजेश जी, प्रभाकर जी, भुवनेश और नीरज जी का.

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  9. बहुत बढ़िया.....हमरा गाँम में मुस्लिम जंसंख्या त नै अहि...मुदा बच्चा में अगल-बगलक गाम में हमहुं तजिया देखअ जाई छलियै। बढ़िया लागल मिथलांचल के इ प्रथा के बारे में जैन क।

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  10. पद्धनाथ जी, मिथिला के बारे में जानकर बहुत मजा आया. इसके लिए मेरी ओर से बधाई. पहले तो लगभग हर इलाके में ऐसी ही सोहार्दपुर्ण घटना होती थी, पर पता नहीं अब लोगों को क्या हो गया है. पर कोई बात नहीं जीवन में हर चीज ग्रहण कर लेना चाहिए और कमोबेश या देर सबेर हमलोग करते ही आ रहें हैं. इसलिए अतिशयोक्ति कुछ भी नहीं है.
    आप से बस अनुनय ही कर सकती हूं कि- आपकी व्यंग पर बहुत अच्छी लेखनी चलती है. जब मैं पहली बार आपके ब्लाग में सोनियां के नाम पत्र पढ़ी तो बाग बाग हो गई. मुझे ऐसा लगा कि आप सभी व्यंगकोरों को पीछे छोड़ सकते हैं. गजब की आपकी पकड़ है. लेख कभी किसी के भी मन को गुदगुदाता है तो कभी अपने में ही दुबक जाता है क्योंकि हमभी इसी समाज के कीड़े हैं. और मध्यम वर्ग में होने के कारण लिजलिजे टाईप के हैं.
    आशा एक अच्छा सा व्यंगय पढ़ने का मौका मिलेगा.

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  11. पुनीता जी;
    जी हाँ मैँ अभी व्यस्त चल रहा हूँ. कहा ना रोजी रोटी का सवाल है. फूर्सत मिलते ही अगला व्यँग प्रस्तुत करुँगा. ना जाने इस बार किसकी बाट लगने वाली है.

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