15.1.08

8 कहाँ गए वे दिन (मिथिला मे मकर-सँक्रान्ति)

अपने ब्लोग से चैनलों की गन्दगी को एक नियमित ठीकाना लगाने से राहत महसूस कर रहा हूँ. गन्दगी साफ करने के लिए गन्दगी से रु-ब-रु होना ही पड़ता है. लेकिन मैने तय किया कि गन्दगी साफाई यन्त्र को केवल एक कोना ही उपलब्ध रहे. और यह जगह साफ सुथरी रहे.
 
आज मकर सँक्रान्ति है और अपने आफिस पिछले दस मिनट से एक घँटा बीत जाने का इन्तजार कर रहा हूँ कब समय हो और मै कन्फ्रेन्स रूम की ओर रुख करुँ. ब्लोग समय काटने का अच्छा साधन है. और उपर से मकर सँक्रान्ति का अवसर. सहसा मुझे याद आने लगता है कि पिछले कितने सालों से मैने मकर सँक्रान्ति नही मनाया है. जहाँ मेरा बचपन मिथिला के एक गाँव मे बीता और किशोरावस्था उत्तर-प्रदेश के गोरखपूरशहर मे. दोनो ही जगह मकर संक्रान्ति के विशेष आयोजन के लिए जाना जाता है. गोरखपूर जहाँ मकर सँक्रान्ति के अवसर पर लगा मेला एक महीना तक चलता है और मिथिला जहाँ प्रत्येक दिन कोई ना कोई त्योहार होता रहता है अपने तरीके से मकर सँक्रान्ति मनाया जाता है. लेकिन यहाँ पर हम बात करेँगे मिथिला मे मकर सँक्रान्ति का जो मेरा कर्मभूमि तो नही बन सका लेकिन वह मेरा जन्मभूमि है... इस तथ्य को भी बदला नही जा सकता.
 
मिथिला मे मकर सँक्रान्ति एक ऐसा त्योहार है जो धान के फसल का कटाई होने के बात मौसम बदलने पर आराम कर रहे किसान लोग मनाते हैँ. और किसी ना किसी धार्मिक मान्यता को इसके साथ जोड़ देते हैँ. वैसे धान की पहली कटाई शुरु होने के बाद किसान लोग एक विशेष त्योहार मनाते हैँ... जिसको साहित्यिक भाषा मे नवान्न कहते हैँ और लोक भाषा मे इसको लवाण कहते हैँ. लवाण मे ऐसा होता है कि इस दिन हम लोग केवल चुड़ा-दही-चीनी खाते हैँ. नाश्ते मे चुड़ा-दही-चीनी और खाने मे भी और रात के खाने मे भी. फसल की कटाई शुरुआत होने के उपलक्ष्य मे पुरे तरह से तैयार हो चुके धान के पौधे को लम्बा बाँस के फुनगी मे बाँधकर खलिहान के बीच मे गाड़ देते हैँ. यह बिल्कुल ऐसा लगता है जैसे कोई विजय स्तम्भ हो. यह पिछले हजारों साल से होता आया है और मिथिला क्षेत्र मे रह हए १.५ करोड लोगों मे से ९०% जो गाँव मे रहते हैँ सभी लोग इस त्योहार को मनाते हैँ. यहाँ ध्यान देने लायक बात है कि हिन्दु का यह त्योहार मुसलमान भाई भी मनाते हैं जितने भी मुसलमान भाई किसानी करते हैं उनके खलिहान मे ऐसा देखा जाता है. हिन्दु या मुस्लिम किसान लोग अपना फसल तैयार होने पर खुशी जाहिर करने के लिए ऐसा करते हैँ. प्रत्येक सुबह बाँस के इस फुनगीयों मे लगा यह धान का पौधे मे से आस पास के गोरैय्या (एक चिड़िया) धान चुग चुग कर खाती है. धान का पौधा इतनी मात्रा मे होती है जिससे कम से कम एक महीना इस पौधे मे से धान को गोरैय्ये की झुण्ड चुगते रहें. एक किँवदन्ति है कि गोरैया जितने दिनो तक चुगती रहेगी घर मे उतनी सुख समृद्धि आएगी. और मकर सँक्रान्ति का समय आने पर इस बाँस के स्तम्भ को हँटा दिया जाता है.
 
मिथिला मे त्योहार का मतलब होता है अच्छा खाना. कम से कम बचपन मे मै ऐसा ही समझता था. और मकर सँक्रान्ति के अवसर पर नाश्ता, दिन का खाना और रात के खाने मे अलग अलग पकवान विशेष रुप से बनता है. सबसे पहले सुबह होने पर घर के बुजूर्ग पूजा पाठ खतम करने के बाद घर के दुसरे और तीसरी पीढ़ी को एक विशेष प्रसाद खिलाते हैं. कच्चा चावल,  तिल और गुड़ से प्रसाद खिलाने के बात बडे बुजूर्ग दूसरे और तीसरे पीढी के लोगों से एक ही प्रश्न पुछते है... क्या तिल और चावल बहोगे? क्या तिल और चावल बहोगे? क्या तिल और चावल बहोगे? इसका यहाँ पर मतलब होता है... कि अभी तक जो मैने तुम्हारा लालन पालन किया है क्या उसका लाज रखोगे? मतलब क्या बुढापे मे मेरा साथ दोगे? और सभी बच्चों को  साकारत्मक जवाब देना पडता है. और ऐसा माना जाता है कि सभी बच्चों से यदि साकारात्मक जवाब मिल जाए तो उस आदमी या महिला का बुढापा मौज मे गुजरता है.
 
इस प्रसाद खाने के बाद नाश्ते की बारी आती है. नाश्ते मे दो तरह का प्रावधान होता है. मिथिला के किसी भाग मे चुड़ा-दही खाया जाता है, लेकिन हमारे यहाँ सूखा-चुड़ा, मुरही और लाई खाया जाता था. लाई एक विशेष मीठा वस्तु हुआ करता था जो चुड़ा, मुरही या तिल के साथ गुड को मिलाकर बनाया जाता था. यू.पी मे इसी को तिल का लड्डू भी कहा जाता है. फिर दिन के भोजन मे खिचड़ी ही इस दिन बनता है. बोला जाता है कि इस दिन खिचडी विशेष तरीके से बनाया जाता है. क खिचड़ी उसके साथ तरह तरह का सब्जी और तरुआ. मिथिला मे पकौड़ी (यानी मुम्बई का भजिया) को ही तरुआ बोला जाता है, इसका रहना विशेष रुप से अनिवार्य और खिचड़ी के चार यार... घी, पापड़, दही अचार.कुल मिलाकर खिचड़ी को श्रृँगार करके उसको परोसा जाता है. शाम के खाने मे कहीं बडी (बाँकी जगह के लिए कढी) और चावल. घर मे कम से कम इतना चुड़ा, मुरही और लाई बनाया जाता है जिससे कम से कम एक महीना तक बच्चे इसको खाते रहें.
 
 आज १७ साल बीत गए जब से मैने इस तरह से मकर सँक्रान्ति को नही सेलिब्रेट किया हूँ. ना लाई है, ना वो खिचड़ी है, और ना ही खीचड़ी के चार यार. कम्यूटर और बँगलोर शहर के ट्रैफिक मे अपने आप उलझा कर रख दिया हूँ, कुछ जिन्दगी मे हाँसिल हुआ हो चाहे नही लेकिन रोजी रोटी के चक्कर मे मिथिला क्षेत्र से पलायन करने वालों की सँख्याँ मे मैने एक गिनती का इजाफ़ा जरूर किया है.
 
पद्मनाभ मिश्र
 
 

8 comments:

  1. भाई साहब...गाम के याद आईब गेल। ओह....आठ बरख भ गेल गाँम नै गेल छी। इ दू टकिया के नौकरी सब सामाजिक समीकरण गड़बड़ा देलक। चूड़ा-दही त सपना भ गेल। कुशियार के ठूठो के दर्शन नै होईया। बढ़िया लिख रहल छी आहाँ...लागल रहू।

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  2. बहुत सुन्दर लिखा है । त्यौहार ही तो ऐसे अवसर हैं जब किसी को भी घर की याद आ जाती है । कुमाऊँ में चूड़ा घर में ही बनाया जाता था । यह ऐसे मीठे और सुगन्धित धान से बनता था कि उसका स्वाद व खुशबू आज भी नहीं भूली हूँ । गाँव में वह अखरोट के साथ खाने को दिया जाता था ।
    घुघूती बासूती

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  3. बहुत अच्छा लिखा है ...

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  4. पद्मनाभ जी मिथिला की ऐसी जानकारी देना जारी रखें ताकि हमारे जैसे लोगों को वहां से रुबरु होने का एक मौका मिले

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  5. बहुत खूब भाई, आपने मिथिला की संस्कृति की याद ताजी कर दी। बहुत-बहुत धन्यवाद। आपसे प्रेरित होकर मैं भी अपनी अनुभूतियों को ब्लॉग पर डाल रहा हूं। फुरसत मिले तो http://www.manglam-manavi.blogspot.com/ पर एक नजर डाल लेंगे। मेरे लिए तो आपकी बकवास पढ़ना अब जरूरत बन जाएगी। आप ब्लॉग पर पोस्ट किए जाने वाले मैटर को यदि मेरे ई-मेल पर लिंकित कर दें, तो आपकी मेहरबानी होगी। धन्यवाद।

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  6. नमस्कार बड़े भाई। अभी तो मैंने आपकी बकवास सुनने की आदत डाल ली है। नहीं सुनता हूँ तो लगता है कि कहीं कुछ खो गया है।

    आप जैसे विद्वानों को पढ़ना बहुत अच्छा लगता है।
    -Prabhakar Pandey
    Research Associate,
    CSE, IIT Bombay

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  7. प्रभाकर भाई,

    आपने मुझे सराहा मुझे अच्छा लगा. और मैं आपके एक बात से सहमत नही हूँ, मै विद्वान नही हूँ. लेकिन एक आम भारतीय का दिल मेरे अन्दर धड़कता है और मुझे कुछ सच बोलने का हिम्मत दे जाता है. बस इतना ही समझ लीजिए.
    आपको जानकर खुशी होगा कि मै आपका पड़ोसी हूँ. गोरखपूर मे रहता हूँ.

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  8. bahut badhiya likhalahun achhi, mithilak sansakar, sahitya, acharan, kein ahank i lekh charitarth kay rahal acchhi, ahina likhait rahu.

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